2023-08-21 11:54:23
उज्जैन : श्रावण मास के शुक्ल पक्षजानिये नागपंचमी का महत्व की पंचमी तिथि नाग पंचमी मनाई जाती है। इस तिथि पर नागदेवता की पूजा की जाती है। पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं इसलिए इस दिन उनका पूजन करने से अनिष्ट टलता है और शुभ की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में भी कहा गया है कि नागपंचमी पर घर में अनंत सहित प्रमुख नागदेवता का सचित्र पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।कई भारतीय पौराणिक कथाओं में नाग और मनुष्य का गहरा संबंध बताया गया है। माना जाता है कि शेषनाग के सहस्त्र फनों पर ही पृथ्वी का भार है। भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में शेषशय्या पर विश्राम पाते हैं। शिवजी के गले में सर्प हार है। कृष्ण-जन्म पर नाग देवता की सहायता से ही वसुदेव यमुना पार करके वृंदावन आते हैं।समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद के लिए वासुकि आगे आए थे। वर्षा ऋतु में जब सांपों के बिल में पानी भर जाता है तो वह बाहर निकल आते हैं और तब उन्हें मारा न जाए बल्कि उन्हें सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाए इसकी स्मृति कराने के लिए ही संभवत श्रावण मास में यह पर्व आता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति में पाए जाने वाले समस्त जीवों से मनुष्य का एक खास आत्मीय संबंध देखा गया है। नागदेव का पूजन भी उसी परंपरा की कडी है। सर्प या नाग नियंत्रण करते हैं। भारत में कृषि जीविका का मुख्य जरिया रहा है और चूहे वगैरह से खेती में बहुत नुकसान होता है। नाग चूहों का सफाया करके खेतों की रक्षा करते हैं और इस तरह संतुलन कायम करते हैं। भगवान दत्तात्रय के एक गुरु नाग देवता भी रहे हैं। मान्यता है कि पंचमी को नागपूजा करने वाले व्यक्ति को सूर्यास्त के पश्चात भूमि नहीं खोदना चाहिए। इस दिन व्रत रखकर एक बार भोजन करना चाहिए। परंपरा रही है कि इस दिन नाग देवता का पूजन किया जाता है। कई लोग सपरिवार नागदेवता का पूजन करते हैं और दूध पिलाने का प्रयास करते हैं। मगर इससे नागों को कष्ट पहुंचता है। वन्य प्राणियों के लिए कार्यरत कई संस्थाओं ने इस बात को प्रमाणित किया है कि नाग देवता पर कुंकुम, अक्षत, अबीर-गुलाल चढ़ाने से उन्हें तकलीफ होती है। जबरन दूध पिलाने से उन्हें दर्द और बीमारी हो जाती है और उनकी जान भी जा सकती है। लोग नाग देवता का पूजन करना चाहते हैं इसलिए सपेरे नागों को कष्ट देते हैं और उन्हें पकडकर कैद में रखते हैं। अत: जो लोग नाग देवता का पूजन करना चाहते हैं उन्हें प्रतीक रूप में नाग पूजन करना चाहिए। यह दिन प्रकृति में उनकी उपयोगिता को समझने का दिन है। हमें प्रतीक स्वरूप में पूजन की महत्ता समझनी चाहिए। नागचंद्रेश्वर मंदिर में विराजे भोलेनाथ नागपंचमी पर उज्जैन के महाकाल मंदिर स्थित #नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट भी खुलते हैं। पूरे वर्ष में इस मंदिर के पट केवल इस पर्व पर ही खुलते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप तक्षक ने घनघोर तपस्या की और महादेव ने प्रसन्ना होकर उसे अमरता का वरदान दिया। नागपंचमी पर नागराज तक्षक स्वयं नागचंद्रेश्वर मंदिर में उपस्थित रहते हैं। भगवान शिव की दुनिया में जितनी भी प्रतिमाएं उनसे सर्वथा भिन्ना रूप में यहां हमें भोलेनाथ के दर्शन होते हैं। दुनिया में कहीं ऐसा मंदिर नहीं है जहां शिव सर्प सिंहासन पर विराजित हों लेकिन इस मंदिर में उनका यह रूप भक्तों पर कृपा करता है। दर्शनों के लिए इस दिन यहां दुनियाभर के भक्तों का तांता लगता है। नागपंचमी पर ही पूजन क्यों? पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार #नागमाता कदूर के एक छल में नागों ने भागीदारी से मना कर दिया था तो उन्होंने नागों को श्राप दिया कि पांडवों के वंशज जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जाएगा, तब तुम सभी उस हवन की अग्नि में जल जाओगे। यह सुनकर नाग भयभीत हुए और वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने उन्हें कहा कि यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारू नामक ब्राह्मण होगा जिसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। इनके यहां आस्तिक नामक पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय के यज्ञ से तुम्हारी रक्षा करेगा। कालांतर में महाराजा परीक्षित को तक्षक ने काट लिया। उनका पुत्र जनमेजय उन्हें नहीं बचा सका। क्रोध में भरकर उसने विशाल यज्ञ करके सभी सर्पों को भस्म करने का संकल्प लिया। तब आस्तिक मुनि के आग्रह और तक्षक के क्षमा मांगने पर जनमेजय का गुस्सा शांत हुआ। तक्षक ने तब वचन दिया कि श्रावण मास की पंचमी को जो भी व्यक्ति श्रद्धासहित नाग की पूजा करेगा उसे सर्प दोष व नाग दोष से मुक्ति मिलेगी।