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धनतेरस पर कुबेर भगवन के पूजा के बिना माँ लक्ष्मी की पूजा अधूरी है

धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के साथ धन्वन्तरि और कुबेर की भी पूजा की जानी चाहिए क्योंकि कुबेर जहां धन का जोड़−घटाव रखने वाले देवता हैं वहीं धन्वन्तरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य देवता हैं। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं उसी प्रकार धन्वन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं।
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2024-10-29 18:44:59

दीपावली से पहले कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाये जाने वाले धनतेरस को धन्वन्तरि त्रयोदशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सोने चांदी की कोई चीज या नए बर्तन खरीदना अत्यंत शुभ होता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के साथ धन्वन्तरि और कुबेर की भी पूजा की जानी चाहिए क्योंकि कुबेर जहां धन का जोड़−घटाव रखने वाले देवता हैं वहीं धन्वन्तरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य देवता हैं। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं उसी प्रकार धन्वन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। यह भी मान्यता है कि इस दिन जो वस्तु खरीदी जाती है उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा के लिए मूर्ति भी खरीदते हैं। दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद भी इस दिन से शुरू हो जाती है। कहीं कहीं स्थानीय मान्यताओं के अनुसार लोग इस दिन से अपनी वस्तु उधार नहीं देते। धनतेरस के दिन सिर्फ नयी वस्तुओं की खरीदारी ही नहीं की जाती बल्कि दीप भी जलाए जाते हैं। धनतेरस पर कुबेर के बिना लक्ष्मी जी की पूजा अधूरी रहती है। धन्वन्तरि हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक देवताओं के वैद्य हैं। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इनकी चार भुजायें हैं। ऊपर की दोनों भुजाएं शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जलूका और औषधि तथा दूसरे में अमृत कलश है। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य इन्हें आरोग्य का देवता कहते हैं। पूरे वर्ष में यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा रात्रि के समय की जाती है और यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए। जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करना चाहिए। चूंकि यह दीपक यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अत: दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन कर यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। व्रत कथा एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया, कया प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया आती है? यमदूत संकोच में पड़कर बोले, नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया भाव से क्या प्रयोजन? यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले, संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कह डालो। तब यमदूतों ने डरते−डरते बताया कि सचमुच! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय कांप उठा था। उत्सुकतावश यमराज ने पूछा− ऐसी क्या घटना घटी थी? तो यमदूत बोले, महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछुड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। वहां के शासक हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा हंस के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी नहीं पहुंचने दी गई। किंतु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुंवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय कांप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे। यमराज ने द्रवित होकर कहा, क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। एकाएक एक दूत ने पूछा− महाराज! क्या अकाल मृत्यु से बचने का उपाय नहीं है? यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा− धनेतरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वन्तरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ। इस दिन सायं को दीप जलाने के बाद भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ्य और सेहतमंद बनाये रखने के लिए प्रार्थना करें।

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