2023-07-19 14:22:28
एनडीए गठन के 25 साल पूरे हो गये। मई 1998 में अटलबिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में एनडीए का गठन हुआ था। एनडीए का सिल्वर जुबली समारोह 18 जुलाई को है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में अभी तक कुल 41 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल शामिल रहे हैं। राज्यों की परिस्थितियां और क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा के कारण एनडीए में सहयोगी दल आते-जाते रहे हैं।देश के राजनीतिक इतिहास में आज तक बहुत से गठबंधन बने और टूटे लेकिन एनडीए 25 वर्षों से अपने अस्तित्व में बना हुआ है और वर्तमान में केंद्र की सरकार के अलावा 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी सरकारें हैं। दरअसल, 90 के दशक में जब भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था और कोई भी दल मुस्लिम मतों को गंवाने के डर से भाजपा के साथ गठबंधन करने से परहेज करता था, उस समय 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने क्षेत्रीय दलों को शामिल कर जो गठबंधन बनाया था उसे एनडीए नाम दिया गया। हम आपको याद दिला दें कि 1996 के लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सबसे बड़े दल का नेता होने के नाते पहले सरकार बनाने का अवसर भी दिया लेकिन भाजपा के पास शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के अलावा किसी अन्य दल का समर्थन नहीं था जिसके चलते अटलजी की सरकार मात्र 13 दिनों में ही गिर गयी थी।
1996 के इस अनुभव को देखते हुए भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के साथ संवाद का काम शुरू किया और अपने मूल मुद्दों को किनारे रखते हुए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने की कवायद शुरू की। जल्द ही यह कवायद रंग लाई और 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को टक्कर देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम के कई दलों का ऐसा संगम बनाया कि कांग्रेस और तीसरे मोर्चे का सफाया हो गया और तेलुगू देशम पार्टी के बाहरी समर्थन से केंद्र में अटलजी की सरकार बन गयी। हालांकि एनडीए सहयोगी अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता की ओर से समर्थन वापस लिये जाने के कारण अटलजी की सरकार 13 महीने में ही गिर गयी लेकिन 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में एनडीए एक बार फिर सत्ता में पहले से ज्यादा ताकत के साथ लौटा। हालांकि निर्धारित अवधि से छह महीने पहले कराये गये लोकसभा चुनावों में एनडीए की हार हुई और कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सत्ता में आया। यूपीए ने 2004 से 2014 तक राज किया। उसके बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए एक बार फिर सत्ता में लौटा और तबसे केंद्र तथा विभिन्न राज्यों में इसकी सरकार चल रही है।
दरअसल एनडीए 25 साल पूरे कर रहा है सिर्फ यही इसकी उपलब्धि नहीं है। एनडीए की उपलब्धि यह भी है कि इसने सबसे पहले भारत में उस मिथक को तोड़ा था कि गठबंधन सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकतीं। एनडीए की सफलता देख कर ही कांग्रेस का भी अहंकार टूटा था। देवेगौड़ा और गुजराल की सरकार से समर्थन वापस लेकर उन्हें गिराने वाली कांग्रेस कभी क्षेत्रीय दलों को अपने साथ नहीं बिठाती थी लेकिन 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले शिमला में हुई कांग्रेस की बैठक में यूपीए के गठन का निर्णय लिया गया और वामदलों से लेकर अन्य कई दलों को इसमें शामिल किया गया।
एनडीए के उतार-चढ़ावों की बात करें तो इसमें सबसे पहले शामिल होने वाली शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद अलग-अलग कारणों से इस गठबंधन को छोड़ दिया। हालांकि शिवसेना जबसे एकनाथ शिंदे के हाथ में आई है तबसे इसकी वापसी एनडीए में हो गयी है। एनडीए की शुरुआत से ही घटक रही समता पार्टी जोकि बाद में जनता दल युनाइटेड कहलाई, वह भी एनडीए में आती जाती रहती है। फिलहाल वह इस गठबंधन से बाहर है।
एनडीए के स्वरूप की बात करें तो इसके तहत गठबंधन नेताओं की जो समिति बनी थी वह सीटों और पदों के बंटवारे से लेकर संसद में उठाये जाने वाले मुद्दों और विरोधियों के हमलों से बचाव की रणनीति बनाती है। अतीत में कई बार कुछ निर्णयों में विचारधाराएं आड़े आईं तो बहुमत के आधार पर फैसले भी लिये गये। एनडीए के संयोजकों की बात करें तो अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक संयोजक थे। एनडीए की कमान भाजपा में अटलजी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी के पास वर्किंग चेयरमैन के नाते रही तो कुछ समय तक भाजपा नेता जसवंत सिंह ने भी इसका नेतृत्व किया। 2014 से एनडीए के चेयरमैन अमित शाह हैं जबकि इसके शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने भी 2008 तक एनडीए का इसके संयोजक के नाते नेतृत्व किया, इसके बाद जदयू के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव के हाथ में एनडीए संयोजक पद की कमान आई। लेकिन जून 2013 में जब जदयू ने एनडीए गठबंधन छोड़ा तो शरद यादव ने भी संयोजक पद छोड़ दिया। तब आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू को एनडीए का संयोजक बनाया गया। 2018 में चंद्रबाबू ने भी एनडीए छोड़ा और तबसे इसके संयोजक का पद खाली पड़ा हुआ है। एनडीए के कुछ घटक कई बार यह मांग कर चुके हैं कि सहयोगी दलों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाये रखने के लिए एनडीए संयोजक की नियुक्ति की जानी चाहिए।
केंद्रीय स्तर पर एनडीए में शामिल दलों की बात करें तो इसमें भाजपा के अलावा शिवसेना, आरएलजेपी, अपना दल (सोनेलाल), एनपीपी, एनडीपीपी, आजसू, एसकेएम, एमएनएफ, एनपीएफ, अन्नाद्रमुक, आरपीआई (ए), एजीपी, पीएमके, टीएमसी (मूपनार) और यूपीपीएल शामिल हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में निषाद राज पार्टी और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों का भाजपा को समर्थन हासिल है। इसी तरह की स्थिति कुछ अन्य राज्यों में भी है। इसके अलावा 2016 में पूर्वोत्तर में एनडीए के तहत बनाये गये नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस में भाजपा के अलावा कई क्षेत्रीय दल शामिल हैं। यह गठबंधन पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में सरकार चला रहा है।
एनडीए की सफलताओं की बात करें तो इसने 1998, 1999, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सिर्फ सरकार ही नहीं दी है बल्कि तीन बार उसके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू जीती हैं तो इसके अलावा तीन बार ही एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार- भैरों सिंह शेखावत, एम. वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ की जीत हुई। एनडीए ने लालकृष्ण आडवाणी के रूप में देश को एक उपप्रधानमंत्री भी दिया है। अटलजी और मोदी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की जीत में फर्क यह रहा कि अटलजी को जहां दोनों बार गठबंधन की सरकार चलानी पड़ी वहीं मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया लेकिन गठबंधन धर्म निभाते हुए सहयोगी दलों को भी मंत्रिमंडल में स्थान दिया।
भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, असम में हिमंत बिस्व सरमा, गोवा में प्रमोद सावंत, गुजरात में भूपेंद्र पटेल, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, मणिपुर में एन. बिरेन सिंह, मेघालय में कोनराड संगमा, नगालैंड में नेफियू रियो, पुडुचेरी में एन. रंगासामी, सिक्किम में प्रेम सिंह तमांग, त्रिपुरा में माणिक साहा, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और उत्तराखण्ड में पुष्कर सिंह धामी शामिल हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों के नगर निकायों में भी एनडीए शासन कर रहा है। देखा जाये तो भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए देश में केंद्र की सत्ता के अलावा अब तक सिर्फ तीन राज्यों- केरल, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में सरकार बना चुका है।
मई 1998 में अपने गठन के बाद से एनडीए ने लगभग 41 राष्ट्रीय और राज्य दलों की भागीदारी देखी है। भाजपा लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष थे।इस विविधतापूर्ण गठबंधन ने 19 राजनीतिक दलों को निमंत्रण दिया है, जिनमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की लोक समता पार्टी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा जैसे उल्लेखनीय सदस्य शामिल हैं।आमंत्रितों की सूची में संजय निषाद की इंडियन शोषित हमारा अपना दल (निषाद) -निषाद पार्टी, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल), हरियाणा से जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और आंध्र प्रदेश से पवन कल्याण के नेतृत्व वाली जन सेना शामिल हैं।अन्य आमंत्रित पार्टियां जैसे तमिलनाडु की एआईएमडीएमके, तमिल मनीला कांग्रेस और भारत मक्कल कालवी मुनेत्र कड़गम इस आयोजन में क्षेत्रीय स्वाद जोड़ने के लिए तैयार हैं।उनके साथ आजसू (झारखंड), कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनसीपी, एनडीपीपी (नागालैंड), एसकेएफ (सिक्किम), ज़ोरमथांगा के नेतृत्व वाले मिज़ो नेशनल फ्रंट, असम गण परिषद, ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। शिवसेना (शिंदे ग्रुप) और एनसीपी (अजित पवार ग्रुप)।यह महत्वपूर्ण सभा न केवल पिछली चौथाई सदी में एनडीए की उल्लेखनीय यात्रा का प्रतीक है, बल्कि इसके सदस्य दलों के बीच एकता और एकजुटता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन भी है। सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन के माध्यम से एनडीए नई दिल्ली में आगामी 2024 चुनावों से पहले एक मजबूत मोर्चा पेश करना, अपनी उपलब्धियों का प्रदर्शन करना और अपनी ताकत दिखाता नजर आएगा।प्रधान मंत्री मोदी की अध्यक्षता में एनडीए की रजत जयंती बैठक में रणनीतिक सहयोग के लिए आधार तैयार करने, पार्टियों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने और गठबंधन के भविष्य के प्रयासों के लिए समर्थन मजबूत करने की उम्मीद है।राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी नजरें टिकाए एनडीए के घटक दल अपने गठबंधन के इस ऐतिहासिक वर्ष में प्रवेश करते हुए एक शानदार राजनीतिक माहौल तैयार करेंगे।
अशोक भाटिया,
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार .लेखक एवं टिप्पणीकार