2024-11-19 13:44:04
नई दिल्ली । कांग्रेस के नेतृत्व वाली सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार द्वारा लगभग 150 करोड़ रुपये की बिजली बकाया का भुगतान करने में विफल रहने के बाद हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने दिल्ली में हिमाचल भवन को कुर्क करने का आदेश जारी किया। हिमाचल भवन राष्ट्रीय राजधानी में मंडी हाउस में स्थित है। अदालत ने बिजली विभाग के प्रधान सचिव को लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान करने के लिए तथ्यान्वेषी जांच करने का भी निर्देश दिया है, जिसके कारण यह स्थिति पैदा हुई। कोर्ट का यह फैसला सुक्खू सरकार द्वारा 64 करोड़ रुपये चुकाने के पिछले आदेशों की अनदेखी के बाद आया है, जो अब ब्याज के कारण बढ़कर लगभग 150 करोड़ रुपये हो गया है। सूत्रों ने बताया कि मामला लाहौल-स्पीति में चिनाब नदी पर 400 मेगावाट के सेली हाइड्रो प्रोजेक्ट से जुड़ा है। पहले की कार्यवाही में सरकार को कंपनी द्वारा जमा कराए गए 64 करोड़ रुपये और 7 प्रतिशत ब्याज लौटाने का आदेश दिया गया था। अदालत ने पहले सरकार को चेतावनी दी थी कि बकाया नहीं चुकाने पर गंभीर परिणाम होंगे। इसमें इस बात पर भी जोर दिया गया कि इसमें शामिल धनराशि राज्य के खजाने से थी। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली में हिमाचल भवन को कुर्क करने की खबरों पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि मैंने उच्च न्यायालय का आदेश नहीं पढ़ा है लेकिन अग्रिम प्रीमियम एक नीति पर आधारित है जिसके तहत जब 2006 में ऊर्जा नीति बनाई गई थी, तो मैं मुख्य वास्तुकार था। हमने प्रति मेगावाट रिजर्व प्राइस रखा था, जिस पर कंपनियों ने बोली लगाई थी। अग्रिम प्रीमियम के मामले में मध्यस्थता द्वारा निर्णय लिया गया था। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार मध्यस्थता आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में गई और सरकार को मध्यस्थता में 64 करोड़ रुपये जमा करने पड़े। मैंने इस संबंध में जानकारी ली है और हम इस प्रकार के आदेश के बारे में अध्ययन करेंगे। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिन्दल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के इतिहास में कभी ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता कि किसी पेमैंट को करने के लिए हाईकोर्ट ने आदेश किए और सरकार ने वो पेमैंट ना की हो जिसके कारण एक बहुत बड़ा ब्लॉट हिमाचल प्रदेश की सरकार व हिमाचल प्रदेश की जनता के उपर यह ब्लॉट लगाने का काम प्रदेश की वर्तमान सुखविन्द्र सिंह सुक्खू सरकार ने किया है। बिन्दल ने कहा कि इस परिस्थिति में सवाल खड़े होते हैं कि सरकार आए दिन जो फैसले लेती है वो जनहित से हटकर लेती है। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 13 जनवरी 2023 को प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता द्वारा जमा किए गए 64.00 करोड़ रुपये के अग्रिम प्रीमियम को याचिका दायर करने की तारीख से इसकी वसूली तक 7फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया था। इस फैसले पर खंडपीठ ने इस शर्त पर रोक लगा दी थी कि यदि प्रतिवादी उपरोक्त राशि कोर्ट में जमा करवाने में असमर्थ रहते हैं तो अंतरिम आदेश हटा लिए जाएंगे। राशि जमा न करने पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 15 जुलाई 2024 को एकल पीठ के फैसले पर लगाई रोक को हटाने के आदेश जारी किए। इन तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्रतिवादी-राज्य के पक्ष में कोई अंतरिम आदेश नहीं है, इसलिए आर्बिट्रेशन अवार्ड को लागू किया जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि सरकार द्वारा अवार्ड राशि जमा करने में देरी से दैनिक आधार पर ब्याज लग रहा है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाना है।