2024-11-06 14:36:53
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को आवाज कुचल दी थी। यह आवाज अपनी व्यापारिक शक्ति से नहीं, बल्कि अपने शिकंजे से कुचली थी। कंपनी ने हमारे राजा-महाराजाओं और नवाबों की साझेदारी से, उन्हें रिश्वत देकर और धमका कर भारत पर शासन किया था। उसने हमारी बैंकिंग, नौकरशाही और सूचना नेटवर्क को नियंत्रित कर लिया था। हमने अपनी आजादी किसी दूसरे देश के हाथों नहीं गंवाई, हमने इसे एक एकाधिकारवादी निगम के हाथों खो दिया, जो हमारे देश में दमन तंत्र को चलाता था। कंपनी ने प्रतिस्पर्धा खत्म कर दी। वही तय करने लगी कि कौन क्या और किसे बेच सकता है। कंपनी ने हमारे कपड़ा उद्योग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को भी नष्ट कर दिया था। मैंने कभी नहीं सुना कि कंपनी द्वारा कभी कोई अनुसंधान किया गया। मुझे बस यह पता है कि कंपनी ने एक क्षेत्र में अफीम की खेती पर एकाधिकार हासिल किया और दूसरे में नशा करने वालों का एक बाजार विकसित कर लिया था। जब कंपनी भारत को लूट रही थी, तब उसे ब्रिटेन में एक आदर्श कारपोरेट निकाय के दिखाई देने लगा है। एकाधिकारवादियों की एक नई पीढ़ी ने इसकी जगह ले ली है। परिणामस्वरूप जहां भारत में हर किसी के लिए असमानता और अन्याय बढ़ता जा रहा है, वहीं यह वर्ग अकूत धन एकत्रित करने में लगा है। हमारी संस्थाएं अब हमारे लोगों की नहीं रहीं। वे एकाधिकारवादियों के आदेश मानती हैं। आज लाखों व्यवसाय तबाह हो गए हैं और भारत युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने में असमर्थ हैं। भारत माता अपने सभी बच्चों की मां है। उसके संसाधनों और शक्ति पर कुछ चुनिंदा लोगों के एकाधिकार और बहुजनों की उपेक्षा ने गहरी चोट पहुंचाई है। मैं जानता हूं कि भारत के सर्वाधिक प्रतिभाशाली और अग्रणी व्यवसायी एकाधिकारवादियों से डरते हैं। क्या आप उनमें से एक हैं, जो फोन पर बात करने से डरते हैं? क्या आप आयकर, सीबीआइ या इंडी के छापों का सामना करने से डरते हैं कि वे आपको अपना व्यवसाय बेचने के लिए मजबूर करेंगे? क्या आपको डर है कि जब आपको सबसे अधिक जरूरत हो, तब वे आपको पाई-पाई का मोहताज कर देंगे या वे आपको फंसाने के लिए अनायास ही नियम बदल देंगे? इन पारिवारिक समूहों को व्यवसाय की संज्ञा देना गलत है। उनके साथ प्रतिस्पर्धा करना रूप में दर्शाया जा रहा था। ईस्ट इंडिया कंपनी भले ही सैकड़ों साल पहले खत्म हो गई हो, लेकिन उसने जो डर पैदा किया था, वह आज फिर से डर है, लेकिन उम्मीद भी कायम है। मैच फिक्सिंग करने वाले एकाधिकार समूहों के विपरीत छोटे व्यवसायों से लेकर दिग्गज कंपनियों तक कई अद्भुत और ईमानदार भारतीय व्यवसाय हैं, लेकिन आप चुप हैं और एक दमनकारी व्यवस्था को सहन कर रहे हैं। पीयूष बंसल ने महज 22 साल की उम्र में व्यवसाय शुरू किया। वह 2010 में लेंसकार्ट की स्थापना से जुड़े, जिसने आईवियर सेक्टर की भारत में नया आकार दिया, जो आज हजारों लोगों को रोजगार देता है। हमारे सामने फकीर चंद कोहली की भी मिसाल है, जिन्होंने एक प्रबंधक के रूप में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस की बुनियाद रखी। यह डर पर महत्वाकांक्षा की जीत थी और आइबीएम एवं एक्सेंचर जैसी दिग्गजों को उनके अपने क्षेत्र में चुनौती देने का साहस था। मैं पीयूष बंसल या दिवंगत एफसी कोहली को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता। उनकी राजनीतिक प्राथमिकताएं मेरी पसंद से अलग हो सकती हैं, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है? युवा पीढ़ी से टाइनीर, इनमोबी, मान्यवर, जोमैटो और पुरानी पीढ़ी से एलएंडटी, हल्दीराम, अरविंद आई हास्पिटल, इंडिगो, एशियन पेंट्स, एचडीएफसी, बजाज आटो और बजाज फाइनेंस, सिप्ला, महिंद्रा आटो एवं टाइटन जैसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने अनुसंधान किया और नियमों के अनुसार काम करना चुना। मैंने संभवतः कई अन्य कंपनियों को छोड़ दिया है, जो इन मापदंडों पर उपयुक्त बैठती हैं, पर आप बात समझ गए होंगे। मेरी राजनीति हमेशा कमजोर और बेजुबान लोगों की हिफाजत की रही है। कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति की रक्षा के बारे में महात्मा गांधी के शब्द ही मेरी प्रेरणा हैं। मुझे मनरेगा एवं भोजन के अधिकार का समर्थन करने और भूमि किस कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं है। उनकी मूल क्षमता उत्पादों, उपभोक्ताओं या विचारों में नहीं, बल्कि शासकीय संस्थाओं, नियामकों और निगरानी पर नियंत्रण रखने की है। ये नियंत्रित करते हैं कि भारतीय क्या पढ़ते, देखते, सोचते और कहते हैं। आज सफलता का निर्धारण बाजार में प्रदर्शन पर नहीं, बल्कि सत्ता से संबंधों पर निर्धारित है। आपके दिलों में अधिग्रहण विधेयक का विरोध करने की प्रेरणा इसी से मिली। मैं आदिवासियों के मशहूर नियमगिरि के संघर्ष में उनके साथ खड़ा था। मैंने तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के संघर्ष में उनका समर्थन किया। मैंने मणिपुर के लोगों के दिल का दर्द सुना। व्यापार की जिस पंक्ति में आप खड़े हैं, उसमें आप ही शोषित वंचित हैं और इसलिए मेरी राजनीति का लक्ष्य अब आपको वह सब दिलाना है, जिससे आपको बंचित किया गया है यानी निष्पक्षता एवं समान अवसर दिलाना। सरकार को दूसरों की कीमत पर बस एक व्यवसाय का समर्थन करने को अनुमति कतई नहीं दी जा सकती। सरकारी एजेंसियां व्यापार पर हमला करने और डराने-धमकाने का हथियार नहीं हैं। मेरा मतलब यह नहीं कि जो डर और दबाव आप पर बनाया गया है, वह बड़े पूंजीपतियों पर ट्रांसफर किया जाए। के बुरे लोग नहीं हैं। उन्हें भी जगह मिलनी चाहिए जैसे आपको भी। यह देश हमा सभी के लिए है। हमारे बैंकों को सबसे बड़े 100 प्रभावशाली कर्जदारों और उनके एनपीए के प्रति अपने मौह को छोड़कर लाभदायक कर्ज देने और निष्पक्ष व्यापार को समर्थन देने वाले तौर-तरीकों की खोजा करनी चाहिए। हमें राजनीतिक व्यवहार को आकार देने में सामाजिक दबाव औस प्रतिरोध की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। मसीहाओं की कोई आवश्यकता नहीं है। आप खुद वह बदलाब हैं, जो सभी के लिए धन और रोजगार पैदा करेंगे। मेरा मानना है कि प्रगतिशील भारतीया व्यापार के लिए न्यू डील एक ऐसा सोचा है, जिसका समय आ गया है। राहुल गांधी (लेखक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं) सौ. सोशल मीडिया