2024-12-28 15:08:10
नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह आज शनिवार को पंचतत्व में विलीन हो गए. दिल्ली के निगम बोध घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. मनमोहन सिंह की बेटियों ने उन्हें मुखाग्नि दीं. इस मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पीएम मोदी, नेता विपक्ष राहुल गांधी, संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला समेत कई नेता वहां मौजूद रहे. सभी ने डॉक्टर साहब को अंतिम श्रद्धांजलि दी. इसके अलावा भूटान के राजा भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल थे.
अंतिम यात्रा से पहले कांग्रेस दफ्तर लाया गया पार्थिव शरीर
आर्थिक सुधारों के महानायक मनमोहन सिंह को आज पूरा देश याद कर रहा है. मनमोहन सिंह का पार्थिव शरीर आज सुबह उनके आवास 3, मोतीलाल नेहरू रोड, नई दिल्ली से सुबह करीब 8 बजे कांग्रेस मुख्यालय लाया गया. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को कुछ घंटे के लिए कांग्रेस दफ्तर में रखा गया, जहां आम जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजिल दी. यहां सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे समेत तमाम दिग्गज नेताओं ने डॉ साहब को श्रद्धांजलि दी. इसके बाद उनके पार्थिक शरीर को निगम बोध घाट ले जाया गया.
दिसंबर को हुआ था मनमोहन सिंह का निधन
26 दिसंबर की रात मनमोहन सिंह का निधन हो गया था. दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. सिंह 92 साल के थे. पिछले कुछ समय समय से काफी बीमार चल रहे थे. दम तोड़ने से कुछ देर पहले उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था. कुछ देर बाद ही उनका निधन हो गया. 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे. देश की अर्थव्यवस्था में उनका अहम योगदान रहा है. उन्होंने देश में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया. मनमोहन सिंह के सम्मान में केंद्र सरकार ने देश में सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है.
26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के गाह में जन्म
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के गाह में हुआ था. 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आया. मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी. फिल. की डिग्री ली. मनमोहन सिंह का सियासी सफर 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, जब वो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बने. वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत में आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर मजबूत हुई.
डॉक्टर सिंह का राजनीति जीवन निष्कलंक
राजनीति डॉक्टर सिंह का सीधा कोई नाता नहीं था . इसलिए उनके योगदान का आकलन राजनीतिक नजरिए से किया जाना मुनासिब सही नहीं होगा. वे मूलतः अर्थशास्त्री थे. नरसिंह राव सरकार के दौर में वित्त मंत्री की बड़ी जिम्मेदारी इस उम्मीद के साथ उन्हें सौंपी गई थी कि वे गहरे वित्तीय संकट से देश को उबारेंगे. आर्थिक उदारीकरण को लेकर तमाम आलोचनाओं के बीच उन्होंने इस संकट से देश को पार कराया. उनका अपना कोई जनाधार नहीं था. इसके लिए उन्होंने कोई कोशिश भी नहीं की . प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल होने में उनकी इस छवि का बड़ा योगदान था. जिस गांधी परिवार ने उन्हें यह कुर्सी सौंपी, उसे राजनीतिक मोर्चे पर उनसे किसी चुनौती का अंदेशा नहीं था. प्रधानमंत्री के दस साल के अपने कार्यकाल में वे गांधी परिवार के भरोसे पर खरे भी उतरे. प्रधानमंत्री के तौर पर उनके प्रदर्शन के आकलन के समय उनकी सीमाओं को भी ध्यान रखना होगा. उन्होंने दोनों बार गठबंधन सरकारों की अगुवाई की. उनकी यह भी मजबूरी थी कि जिनकी बदौलत वे कुर्सी पर थे, वे उन्हें एक सीमा से अधिक फैसले लेने की छूट देने को तैयार नहीं थे. आर्थिक मामलों में उनकी काबिलियत असंदिग्ध थी. कुछ मंत्रियों के कारण उनकी सरकार को काफी बदनामी झेलनी पड़ी. लेकिन निजी तौर पर डॉक्टर मनमोहन सिंह का कार्यकाल पूरा जीवन निष्कलंक रहा. उनकी निष्ठा-ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठा.
राव सरकार में देश को आर्थिक संकट से उबारा
जून 1991 में देश के पास दो सप्ताह के आयात मूल्य को चुकाने का विदेशी मुद्रा भंडार शेष था. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचते ही नरसिम्हा राव को इस विकट संकट से निपटने के लिए ऐसे वित्त मंत्री की तलाश थी जो वित्तीय प्रबंधन मामलों में अंतरराष्ट्रीय जगत में भरोसेमंद चेहरा हो. राव ने कांग्रेस पार्टी से जुड़े वित्त मंत्री पद के अन्य राजनीतिक दावेदारों को दर किनार किया. आई.जी.पटेल ने इस पेशकश को ठुकरा दिया. उसी रात पी.सी.अलेक्जेंडर ने टेक्नोक्रेट मनमोहन सिंह से संपर्क किया. शपथग्रहण की सुबह नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह से बात की. सिंह ने शर्त रखी कि पद तभी स्वीकार करूंगा , जब मुझे काम में प्रधानमंत्री का पूरा समर्थन मिलेगा. राव ने कहा कि आपको पूरी छूट होगी. अगर नीतियां सफल रहीं तो हम सभी श्रेय लेंगे. असफल रहे तो आपको जाना होगा. राव सरकार पूरे पांच साल चली. मनमोहन सिंह भी इस पूरे दौर मंत्री रहे. आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की जिस नीति पर आगे चल आज देश एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर स्थापित हुआ , उसके जनक मनमोहन सिंह थे.
डॉक्टर मनमोहन सिंह के राष्ट्र निर्माण में योगदान को कभी नहीं भुला पाएंगे भारत के लोग
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने सूचना क्रांति, मनरेगा, किसानों की कर्जमाफी, और शिक्षा के अधिकार जैसे ऐतिहासिक कदम उठाए. उन्होंने सूचना का अधिकार , शिक्षा का अधिकार और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) , अमेरिका से असैन्य परमाणु समझौते जैसी उपलब्धियां मनमोहन सिंह के सरकार के हिस्से में आईं. और लाभकारी योजनाओं की शुरुआत की. नरसिम्हा राव सरकार में उन्हें भारत का वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था. 1991 में उन्होंने देश को आर्थिक संकट से बचाया था इसलिए डॉक्टर साहब को आर्थिक सुधारों का महानायक कहा जाता है.
उनका निजी जीवन गौरवशाली उपलब्धियों से भरा रहा.
अर्थशास्त्र के वे अंतरराष्ट्रीय जगत की ख्यात हस्ती थे. रिजर्व बैंक के गवर्नर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी निभाई. वे इस लिए भी याद किए जाएंगे कि हर दायित्व के प्रति वे समर्पित भाव से कार्यरत रहे. उनका लम्बा जीवन निष्कलंक और निर्विवाद रहा. प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी निष्ठा,समर्पण और अपना सर्वोत्तम देने के उनके प्रयासों पर भी कभी सवाल नहीं उठे. फिर भी ऐसे मौके जब उन्हें बोलना चाहिए था या कोई कड़ा फैसला लेना था, वे क्यों खामोश रहे या पिछड़े, इसका जवाब मनमोहन सिंह के पास ही था ? शायद उन्होंने अपने संस्मरण संजोए हों और वे अब उनके जाने के बाद कभी सामने आएं. प्रधानमंत्री के कार्यकाल के आखिरी दिनों में किसी मौके पर उन्होंने एक शेर पढ़ा था. वो उनके शांत-सौम्य स्वभाव और व्यक्तित्व की अतल गहराई की झलक देता है.
संवाददाता : रमण श्रीवास्तव