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छठ पूजा की महिमा से जुड़ी ये पौराणिक कथाएं एवं पूजा विधि

भले ही छठ पर्व भारत के कुछ ही हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन इस पावन पर्व की परंपरा का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इसके अलावा विष्णुपुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मपुराण में भी छठ पर्व का उल्लेख मिलता है। छठ पर्व में सूर्य देवता की उपासना की जाती है और पौराणिक कथाओं में कई ऐसे किस्से हैं, जिसमें सूर्य की महिमा और छठ पर्व को करने के विधान बताए गए हैं। तो, चलिए जानते हैं वो किस्से....
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2024-11-05 19:29:14

छठ में भले सूर्य देवता की पूजा होती हो लेकिन छठ पर्व को मैया कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार षष्ठी देवी को लोकभाषा में छठ माता कहा जाता है, जो ऋषि कश्यप तथा अदिति की मानस पुत्री हैं। इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। मां देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद के लिए जब इन्होंने असुरों का संहार किया, तो इन्हें देवसेना कहा गया। देवसेना के बारे में कहा जाता है कि वो नवजात शिशुओं के जन्मकाल से लेकर अगले 6 दिनों तक उनके पास रहकर उनकी रक्षा करती हैं। छठ एक बहुत ही महिमामयी पर्व है और कई पुराणों और वेड में इसका जिक्र मिलता है। इसलिए, इससे जुड़ी कई पैराणिक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, ऋषि अर्क को स्वयं आकाशवाणी से इस महान पर्व को करने की प्रेरणा मिली थी। वे कुष्ठ रोग से बुरी तरह से पीड़ित थे और पीड़ा के कारण अपना शरीर तक त्यागना चाहते थे। तभी आकाशवाणी हुई और उन्हें इस पर्व की महिमा पता चली। फिर उन्होंने पूरी भक्ति के साथ यह पर्व किया, जिसके बाद वो इस त्वचा रोग से मुक्त हो गए। छठ में सूर्य के दोनों स्वरूप यानि उनके उगते स्वरूप और डूबते स्वरूप की पूजा होती है। सूर्य देव त्वचा के रोगों को ठीक करने के लिए जाने जाते हैं और छठ पर्व में सूर्य देव की ही पूजा होती है। एक अन्य कथा के अनुसार, माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था। इसके बाद ही छठ महापर्व की शुरुआत हुई। मुंगेर सीता मनपत्थर (सीता चरण) सीताचरण मंदिर के लिए जाना जाता है, जो मुंगेर में गंगा के बीच में एक शिलाखंड पर स्थित है। एक और कथा के अनुसार, प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया अपनी पुत्री की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। छठ पर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है। उस कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि हे राजन्! आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से पुत्र जैसी कामनाओं के लिए भी छठ पूजा किया जाने लगा। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पर्व का शुभारंभ होता है और सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन हो जाता है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है. छठ पूजा के व्रत रखने का खास महत्व माना जाता है. इस साल आज यानी 5 नवंबर से छठ पर्व की शुरुआत हो रही है. छठ पर्व का पहला दिन नहाय-खाय का होता है. इस दिन घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है ताकि घर का वातावरण शुद्ध और पवित्र हो. इस दिन छठ पूजा का व्रत रखने वाली महिलाएं सिर्फ सादा और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. छठ पूजा के भी कुछ खास नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है. आइए जानते हैं छठ पूजा के पूरे लाभ के लिए पहले दिन यानी नहाय-खाय के दिन कौन-कौन से नियमों का पालन करना चाहिए. छठ पर्व कैसे मनाया जाता है, इसकी पूजा विधि भारत में छठ पूजा का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और समापन सप्तमी के दिन। इस दौरान महिलाएं निर्जला व्रत रखकर डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। ये पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, बंगाल और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। यहां इस पर्व की रौनक देखने लायक होती है। इस साल छठ पर्व 5 नवंबर से लेकर 8 नवंबर तक रहेगा। छठ पूजा 2024 प्रारंभ और समापन इस साल छठ महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर से हो गई है और इसकी समाप्ति 8 नवंबर को होगी। पहला अर्घ्य 7 नवंबर को दिया जाएगा और दूसरा अर्घ्य 8 नवंबर को दिया जाएगा। छठ पूजा कैलेंडर 2024 छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय, 5 नवंबर 2024, मंगलवार छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना, 6 नवंबर 2024, बुधवार छठ पूजा का तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य, 7 नवंबर, गुरुवार छठ पूजा का चौथा दिन- उगते सूर्य को अर्घ्य, 8 नवंबर 2024, शुक्रवार छठ पर्व में सूर्य को अर्घ्य देने का समय (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : 7 नवंबर 2024 की शाम 05 बजकर 32 मिनट से (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय : 8 नवंबर 2024 की सुबह 06 बजकर 38 मिनट तक। कैसे मनाया जाता है छठ पर्व छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करती हैं और स्नान के बाद इस पर्व की शुरुआत करती हैं। छठ पर्व का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है। खरना पूजा में दिन भर व्रत रहने के बाद व्रती रात को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर का सेवन करके 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करती हैं। इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी में आग जलाकर साठी के चावल और दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है। इसी दिन से 36 घंटों के कठिन व्रत की शुरुआत होती है। छठ पर्व के तीसरे दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। वहीं चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ व्रत का समापन किया जाता है। छठ पूजा का महत्व छठ पूजा के दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं। व्रत रहते हुए छठ का प्रसाद तैयार करती हैं। फिर पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं। मान्यताओं अनुसार छठ पूजा करने से संतान को दीर्घायु और सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कई महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी छठ का व्रत रखती हैं। छठ पूजा में न करें ये गलती छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए। साथ ही इस दौरान घर के सभी लोगों को सात्विक भोजन करना चाहिए। छठ पूजा के दौरान प्‍याज और लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। नहाय-खाय के दिन क्या करते हैं छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन सफाई का विशेष महत्व रखा जाता है। इसी दिन छठ पूजा का आरंभ हो जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं तलाब या गंगाजल युक्त जल से सर धोकर नहाती हैं और उसके बाद ही भोजन पकाती हैं। इस दिन स्नान करने के बाद ही भोजन पकाना चाहिए और खाना चाहिए। इस दिन व्रत का खाना बनाने के लिए सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए। छठ के नहाय- खाय के दिन एक समय ही भोजन किया जाता है, इसलिए इस दिन पूरे मन से और आराम से बैठकर भोजन करना चाहिए। नहाय- खाय के दिन का भोजन करने से व्रती के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा भी आती है। छठ व्रत कैसे रखते हैं-छठ पूजा के लिए दो बड़े बांस की टोकरी लें, जिन्हें पथिया और सूप के नाम से जाना जाता है। -इसके साथ ही डगरी, पोनिया, ढाकन, कलश, पुखार, सरवा भी जरूर रख लें। -बांस की टोकरी में भगवान सूर्य देव को अर्पित करने वाला भोग रखा जाता है। जिनमें ठेकुआ, मखान, अक्षत, भुसवा, सुपारी, अंकुरी, गन्ना आदि चीजें शामिल हैं। -इसके अलावा टोकरी में पांच प्रकार के फल जैसे शरीफा, नारियल, केला, नाशपाती और डाभ (बड़ा वाला नींबू) रखा जाता है। -इसके साथ ही टोकरी में पंचमेर यानी पांच रंग की मिठाई रखी जाती है। जिन टोकरी में आप छठ पूजा के लिए प्रसाद रखा रहे हैं उन पर सिंदूर और पिठार जरूर लगा लें। -छठ के पहले दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। -इस दिन भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल की टोकरी या सूप का उपयोग करना चाहिए। छठ पूजा सामग्री लिस्ट गन्ना कपूर दीपक अगरबत्ती बाती कुमकुम चंदन धूपबत्ती माचिस फूल हरे पान के पत्ते साबुत सुपाड़ी शहद हल्दी मूली पानी वाला नारियल अक्षत अदरक का हरा पौधा बड़ा वाला मीठा नींबू शरीफा केला और नाशपाती शकरकंदी सुथनी मिठाई पीला सिंदूर दीपक घी गुड़ गेंहू चावल का आटा

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